मानव या हारे मानव मन
हे मानव! तुम इतनी जल्दी हार गए!
जीवन तो फूलों, काटों का संगम हैं,
रौंद जा उन काँटों को जो पथ में आते हैं,
लड़ जा उन तुफानो से जो पथ से डगमगाते हैं|
सीख लो उनसे जो काँटों पर ही सोते हैं,
उन्हें किसी कि आश नहीं, फिर भी जीते हैं|
तुम तो अभी उनकी अपेक्षा भले हो,
फिर क्यों अपने कर्म से भागते हों|
हे मानव! तुम इतनी जल्दी हार गए!
तोड़ दो उन सारे कुविचारो को,
जो तुम्हे हर पल तड़पाते हैं|
जोड़ लो उन सारे सुविचारो को,
जो तुमसे हर पल भागते हैं|
भूल जाओ उन लोगो को,
जो मतलब के लिए पास आते थें|
हे मानव! तुम इतनी जल्दी हार गए!
लगे तुम्हे की इस दुनिया में कोई अच्छा नहीं,
परमेश्वर के द्वार घूम आते हैं|
फिर भी तुम्हे किरण कि रेखा न दिखाई दे,
जो तुम्हारे मन को रोके है, उसी को कर जाते हैं|
तुम अपने मन से ये बात निकाल दो,
तुम्हे देख दुनिया क्या सोचेगी?
तुम जीत गए तो,
यह दुनिया ही तुम्हारे सर पर सेहरा बाँधेगी|
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