यह नहीं होना चाहिए था
आप आश्चर्य में पड़ गए होंगे कि क्या नहीं होना चाहिए था| मेरा आशय आपको आश्चर्यचकित करने का नहीं है| आज के आधुनिक युग में किसिस के पास समय नहीं है, वह छोटा हो या बडा| या मैं कहू कि हम जान-बुझकर अपनी आँखे बंद किये हुए हैं| ताकि सामने वाला हमें दृष्टिहीन समझे| आप कही भी जाईये या अपने चारो ओर देखिये, आपको आँख बंद किये हुए दृष्टिहीन जरुर मिल जायेंगे| मैं आपका अब ज्यादा समय नहीं लूँगा, क्योकि मुझे भलीभात ज्ञात है कि आपके पास फिजूल बातों के लिए समय नहीं हैं| तो भी आपका थोडा सा समय लूँगा, कोई चूक हो जाये तो क्षमा कर दीजियेगा| अंत: मैं अपने विषय पर आता हूँ|
हम सभी जानते है की दुनिया तेज गति से बदल रही है| रोज नए-नए आविष्कार हो रहे है, जिससे जीवन आनंदमय हो गया है| कुछ आविष्कार तो हमारे लिए संजीवनी बूटी का काम कर रहे हैं| लेकिन रोज नए-नए आविष्कार और जीवन को सुखमय बनाने कि होड़ में हम दृष्टिहीन हो चुके है| हर व्यक्ति चाहता है कि उसके पास भी गाड़ी हों, पैसे हो, बंगले हो इत्यादी जिससे उसका जीवन सुखमय बीते|
अब आप गौर कीजिये, पृथ्वी पर मानवो कि संख्या अनगिनत है| उसके बाद किट-पतंगो, जन्तुयो और जानवरों का बसेरा है| पृथ्वी हमारे गर कि तरह है| हमारे एक छोटे से घर में लगभग चार या पाँच लोग आराम से रह सकते है, उसमे भी कभी कभार हम झगड पड़ते हैं| अब आप सोचिये हमारे घर कि यह हालत है तो पृथ्वी पर रहने वाले मानवों और जानवरों कि कया हालत होगी? उसके पश्चात भी दिन प्रतिदिन पृथ्वी पर जन-संख्या बढती ही जा रही हैं| वह भी अपने लिए रोटी, कपड़ा और माकन की माँग कर रहे हैं| जिस प्रकार हम अपने घर में किसी पराये को घुसने नहीं देते और उसे दुत्कार कर भगा देते है| उसी प्रकार पृथ्वी की अपनी एक रचना है, किंतु आज के हम दुर्बुधि मानव उसको बिगाडने के पीछे लगे हुए है|
हम अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए पृथ्वी के हर भाग पर अतिक्रमण कर रहे हैं| अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए पेडो को तीव्र गति से कांट रहे हैं, जिससे पर्यावरण का संतुलन बिगड गया है| उदाहरण के आधार पर, आज सूर्य देव का ताप इस प्रकार हो गया है कि कोई हमें आग में जला रहा है| वर्षा रानी अनिश्चित कालीन होते जा रही हैं| वनों को उजाड़ कर हम वहाँ बड़े-बड़े कल कारखाने और इमारते बांध रहे हैं| जिससे पर्यावरण को तो नुकसान हो ही रहा है, उसके साथ-साथ जल प्रदूषण, वायु प्रदूषण, भूमि प्रदूषण और ओजोन, जो हमारे लिए जीवन रक्षक परत हैं, उसपर विपरीत प्रभाव पड़ रहा हैं| जिससे जलचर जीवों का जीवन और उसके साथ-साथ उभयचर प्राणियों का जीवन भी प्रभावित हो रहा हैं| हम लाचार वश जंगलो को उजाड़ कर हम वहा घर, कल कारखाने इत्यादी बना रहे हैं| समुन्द्र के किनारे, नदियों के किनारे आदि ऐसे जगहों पर रहने को मजबूर हैं, जहाँ हर क्षण मौत का खतरा हैं|
जब हमारे ऊपर प्राकृतिक आपदा आती है तो परमेश्वर के चरण में जाकर अपना आश्रय ढूंढते हैं, प्रार्थना करते है कि परमेश्वर हमें इस प्राकृतिक आपदा से हमें बचा लो| प्राकृतिक आपदा से सैकडो जाने चली जाती है| हजारों बेघर हो जाते हैं| चारो तरफ त्राहि-त्राहि का माहौल उत्पन्न हो जाता है| हर कोई दुखी हो जाता है| सभी सोचते है, यह परमेश्वर (प्रकृति) का कैसा खेल हैं? हम दुर्बुधि मानव परमेशर को दोषी ठहराते हैं और दुखी मन से, मन ही मन इतनी गालियाँ बरसा देते हैं कि परमेश्वर हमें देखकर ठहाका लगाकर हसते होंगे और कहते होंगे, हे! दुर्बुधि मानव तुम मुझसे सहायता कि उमीद क्यों करते हो? जो कर्म तुमने किया है, उसी का फल तो तुम्हे मिल रहा हैं| मैंने थोड़ी कहा था कि तुम पेडो को काँटों, जलाशयों के किनारे रहो या ऐसी जगह रहो जहा हर क्षण खतरा हैं| तुम स्वयं वहा गए| तुम उस मुर्ख कि भाती हो गए हो, जो जिस टहनी पर बैठा था, उसी को काँट रहा था| आज तुम्हारी जन-संख्या इतनी बढ़ते जा रही है की तुम अपने बनाये हुए, स्वयं के चक्रवहयु में, स्वयं में उलझ गए हो|
परमेश्वर ने सत्य ही कहा है, आज हमारी हालत तड़फती हुई मछली के समान हो गई है, जिसे जल से बाहर निकाल दिया गया है|
और एक ओर, हमारे अंदर ऐसे द्वेष उत्पन्न हो चुके है की हम चाह कर भी एक-दुसरे के ऊपर विश्वास नहीं कर सकते हैं| या दुसरे शब्दों में, बारूद तैयार है उसमे चिंगारी लगानी बाकि हैं| आज हम प्रतिस्पर्धा कि होड़ में ऐसे हथियार, औजार और बम बना रहे है, जो हमारे लिए हानिकारक है या हमारे लिए यमदूत हैं| हमारे आविष्कारो का ही फल है कि आतंकवादी हथियारों, बमों का उपयोग मानव जीवन को तहस-नहस करने के लिए कर रहे हैं|
जब कोई बड़ी घटना घट जाती है तो हम मीटिंग रखते है या सभा आयोजित करते है| विषय होता है “यह नहीं होना चाहिए था”| हमें एकजुट होकर इसका सामना करना है| एक-दुसरे के सुख-दुःख में मदद करना हैं| हमें इन आतंकवादियों को जड़ से उखाड़ फेकना हैं, इसके लिए हमें आपकी मदद कि जरुरत होगी आदि|
एक ओर तो हम प्राकृतिक आपदाओं को आमंत्रित कर रहे है और दूसरी ओर अपने हाथो से, अपने मौत का सामान का आविष्कार करते जा रहे हैं| मुझे डर हैं कि कही जो द्वेष हमारे मन में उमड़ रहा हैं, वह कही प्राकृतिक आपदाओ की तरह बाह्य रूप न लेले| हम अपना ही विनाश कर ले या प्राकृतिक आपदाओ का कहर हम पर टूट पड़े और हम कहने के लिए भी न बचे कि “यह नहीं होना चाहिए था”|
मैं परमेश्वर से प्रार्थना करूँगा की वह हमें सदबुध्धि प्रदान करे|
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