मैं करूँ तो भी क्या करूँ
एक बार की बात है, परमेश्वर के सच्चे मन से अर्चना करने वाले भक्त परमेश्वर से नाराज हो गए| उनकी शिकायत थी कि, परमेश्वर की सच्चे मन से पूजा अर्चना करने के बाद भी वें प्रकट नहीं होते है| वे परमेश्वर से चाहते थे कि, वे प्रकट हो और पृथ्वी पर फैल रहे पाप को समाप्त करे| लेकिन वह परमेश्वर की कितनी भी तपस्या करते, परमेश्वर प्रकट नहीं होते थे| परमेश्वर के सच्चे भक्तो ने, परमेश्वर की पूजा अर्चना बंद कर दी|
परमेश्वर को इससे बड़ा दुःख हुआ|
एक रात वे भक्तो की कुटिया में पधारे|
उस समय सभी भक्त गहरी नींद में सोयें हुए थे|
परमेश्वर ने उन्हें आवाज दिया – हे! मेरे प्यारे भक्तो, उठो मैं तुम्हारे समक्ष प्रकट हूँ| भक्त परमेश्वर की आवाज सुन उठते है और परमेश्वर को चरणस्पर्श कर नमन करते है|
परमेश्वर भक्तो से पूछते है कि,
हे भक्तो
! तुमने मेरी पूजा अर्चना क्यों बंद कर दी? भक्त परमेश्वर से क्षमा मांगते है और कहते है “आदिदेव आप तो भलिभांत जानते है कि, पृथ्वी पर निरंतर पाप बढ़ते जा रहा है और हमारी आस है की आप पृथ्वी पर से पाप को समाप्त कर दे|”
परमेश्वर भक्तो को बताते है कि,
हे भक्तो!
आज पृथ्वी के सभी जीवो
(मनुष्यों) में पाप अपनी धाक जमाये हुए बैठा है और वह दिन-रात चौगुनी गति से बढ़ रहा है| अगर मैं पृथ्वी पर से पाप को समाप्त करता हूँ तो, मुझे सभी जीवों को समाप्त करना पड़ेगा| क्योकि पाप तो उनके मन में अपनी धाक जमाये बैठा है| इसलिए मैं चाहकर भी पाप को समाप्त नहीं कर सकता हूँ| समय आने पर सभी जीवो को अपने पाप-पुण्य का फल मिलेगा और कर्मानुसार, उन्हें अगले योनी में प्रवेश मिलेगा|
भक्तो मैं तुमसे इतना ही कहूँगा कि, तुम हिम्मत मत हारो| यह मत सोचो कि, मैं अपने भक्तो की फिक्र नहीं करता| मैं सदैव तुम्हारे सम्मक्ष रहता हूँ| फर्क इतना है की मैं तुम्हारे सामने साक्षात् प्रकट नहीं हो सकता| अगर मैं साक्षात् रूप धर कर पृथ्वी से पाप को समाप्त करने के लिए अवतरित होता हूँ तो मुझे इन जीवों के सामने उपहास का पात्र बनना पड़ेगा और मुझसे मेरी असलियत का प्रमाण मांगेगे|
अंत:
भक्तों तुम सत्य के प्रचार में लगे रहो और अथक प्रयत्न करते रहो ताकि सत्य की ज्योत जलते रहे| जितना हो सके जीवों के मन में बैठे पाप को, सत्य की लहर प्रवाहित कर, समाप्त करने की कोशिश करो और उन्हें बताओ कि, वे जिन भौतिक पदार्थो के लिए आँख मूंद उसके पीछे भाग रहे है, वह भौतिक पदार्थ ही उनके अंत: की निशानी है| उनको सत्य की उपासना करने को कहो| यही आखिरी मार्ग है| इसके बल से ही पाप को नष्ट किया जा सकता है|
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