परमेश्वर द्वारा पृथ्वी की रचना
पृथ्वी कि रचना होने में लगभग करोडो वर्ष लग गए| उसके पहले पृथ्वी ज्वालामुखी कि तरह तेज थी| कही कुछ नहीं था केवल आग ही आग था| तब परमेश्वर ने विचार किया कि हमें अब पृथ्वी को मनुष्यों के लिए आश्रय बनाना चाहिए| यह विचार कर परमेश्वर ने उस दिशा में कार्य सुरु कर दिया, लगभग करोडो-वर्षों बाद पृथ्वी का निर्माण हुआ|
अब परमेश्वर के सामने मानवों को जन्म देना मुख्या प्रश्न था| परमेश्वर ने सोच-विचार कर पहले जल में एक जीव को जन्म दिया और फिर चारो तरफ पेड़-पौधों को जन्म दिया| जिससे धरती कि हरियाली देखने लायक थी|
परमेश्वर ने मनुष्य को जन्म देते समय उसके सामने एक शर्त रखी कि तुम्हारे जन्म और मृत्यु के बीच जो पाप और पुण्य तुम करोगे, वह तुम्हे मुचे बताना होगा| मनुष्य ने यह शर्त बिन सोचे-समझे स्वीकार कर ली| परमेश्वर ने मानवों से कहाँ, मैंने तुम्हारे जीवन निर्वाह के लिए पृथ्वी पर सारी चीजें उपलब्ध करा दी हैं और तुम्हारे मरने के बाद तुम मुझे बताओगे कि पृथ्वी पर किस प्रकार कि कमी रह गयी हैं|
इसी बीच शैतान भी पृथ्वी पर जाने का सोच रहा था कि मनुष्य ने उसके आने का मार्ग खोल दिया| परमेश्वर द्वारा रचना कि गयी पृथ्वी को उजाड़ करने लगा| परमेश्वर को चिंता होने लगी कि मानव अपने विनाश को स्वयं अपने हाथों से पृथ्वी पर आमंत्रित कर रहा है| परमेश्वर ने उन शैतानों का अंत करने के लिए मनुष्य के रूप में पृथ्वी जन्म लिया किंतु असफल रहे, क्योकि परमेश्वर द्वारा रचित मानव भी शैतान का रूप ले चुका था| उसने पृथ्वी पर लगे वृक्षों को काटना और जंगलो को उजाड़ करना शुरू कर दिया| मनुष्य में शैतान ने लालच, मोह, ईर्ष्या, वासना, घमंड आदि ऐसे दवेष भर दिए, जो मनुष्य को दलदल में घसीटते ले जा रहे हैं|
आज मानव ने प्राकृतिक पर्यावरण को इतना नुकसान पहुचाया हैं कि सूरज देवता भी अपनी गर्मी को पृथ्वी पर विष कि तरह उड़ेल रहे हैं| मनुष्य यह भूल गया हैं कि उसने जन्म लेने से पहले परमेश्वर को वचन दिया था कि वह मृत्यु के बाद अपने पाप-पुण्य और पृथ्वी कि रचना में क्या कमी हैं? वह परमेश्वर को बताएगा| मनुष्य इस कलयुग में केवल अपनी-अपनी सोच रहा हैं| मानव बिना परवाह किये अपना जीवन जी रहा हैं| मनुष्य कि मूर्खता कि वजह से आज धरती पर पाप बढ़ता ही जा रहा हैं| यही कारण हैं कि पृथ्वी पर भ्रष्टाचार, अंधविश्वास, गरीबी, बीमारी आदि ऐसे बुराईयों ने जन्म ले लिया है, जो मनुष्य को अपने अंदर स्वातित्व करते जा रहे हैं| इसका मुख्य कारण यह हैं कि मनुष्य अपनी प्राचीन संस्कृति को भुलाकर ज्यादा से ज्यादा अपनी संस्कृति बनाने कि होड़ मैं हैं|
मनुष्य दिन-प्रतिदिन अपने काल को निकट बुलाता जा रहा है| वह दिन दूर नहीं जब पृथ्वी का पुन: विनाश हो जायेगा और पृथ्वी पहले कि तरह ज्वालामुखी का रूप ले लेगी| पृथ्वी पर भी अन्य ग्रहों कि तरह मानव जीवन समाप्त हो जायेगा|
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