Sunday, 19 January 2020

प्यार और जीवन


प्यार और जीवन

                   प्यार यह केवल ढाई अक्षर का शब्द ही नहीं हैबल्कि इन्ही ढाई अक्षरों में समस्त जगत समाया हुआ है। चाहे वह नियंता हो अथवा एक तुच्छ जीव।

                   जीव की उत्पति से ही प्यार की उत्पति हुई क्योकि यह किसी मूर्ति में विराजमान नहीं है और ना ही अचल वस्तुओं में। प्यार विराजमान है तो जीवो के ह्रदय मेंजिसके कारण समस्त जगत गतिशील है। प्यार की परिभाषा नहीं दी जा सकती हैक्योकि समय के अनुसार या परिवर्तन के साथ इसकी परिभाषा बदल जाती है और नाम भी।

                   उदाहरण के लिएमाता-पिता का अपने बच्चे के प्रति प्यारभाई-बहन का प्यारमित्र के प्रति प्यारभक्तो का परमेश्वर के प्रतिआलसी लोगो को निद्रा सेलैला-मजनू का प्यारजानवरो के प्रति प्यारदेश के प्रति प्रेमहरे-भरे वृक्षो से आच्छादित जगहों से लगाव या प्यार आदि ऐसे अनेक कारक है। जिससे किसी को नाकिसी को लगाव या प्यार जरूर है। शायद ही पृथ्वी पर कोई ऐसा जीव-जंतु होजो यह कह दे कि उसको किसी के प्रति प्रेम या स्नेह नहीं है। अगर  ऐसा कोई कहता हैंतो समझाना चाहिए कि वह मृत है और केवल उसका मुँह चल रहा है।

                    प्यार अगर नहीं होता तोशायद आज जहाँ हम रह रहे हैवहा जीवन नहीं होता। अगर होता तो कल्पना कीजिये प्यार के बगैर वह जीवन कैसा होताऔर वह जीव भी।

                    परिवर्तन के साथ-साथ प्यार की परिभाषा बदली और मतलब भी। मानव इसको हथियार के समान उपयोग करने लगा। वैसे भी कहा जाता है जो चीज अच्छी हैवह बुरी भी है। हम यह कतई नहीं कह सकते कि प्यार बुरा है क्योकि प्यार से ही दुनिया चल रही है। प्यार बुरा नहीं हैबल्कि प्यार को खंजर बनाकर उपयोग करने वाले वे लोग बुरे हैं। जो अपना उल्लू सीधा करने के लिएकिसी को प्यार में फाँसते है और मतलब पूरा हो जाने परदूध में मक्खी गिरी समझ निकाल फेकते है। और पुनः दूसरे लोगो को प्यार में फाँस करधोखा देने के लिए तैयार हो जाते है। कई लोगो को तो इसमें महारत हासिल है और हम धोखा खाने के बाद उन्हें समझ पाते है।

                    आज हमारी युवा पीढ़ी भी प्यार के ढ़ाई अक्षरो का गलत इस्तेमाल कर रही है। मेरा आशय केवल उन नवयुवको और नवयुवतीयो और उन लोगो के लिए हैजो प्यार को खेल समझते है। इसमें कई बार होता है क़ि वह एक दूसरे को सही से समझते नहीं है और वह सोच लेते है की उनका जीवन साथी मिल गया है। लेकिन जब प्यार में धोखा खा जाते है तो प्यार को खेल समझने वालो को तो कोई असर नहीं पड़ता है। परंतु जो यह मान बैठे रहते है की यह उनका सच्चा प्यार हैवे जीवन से निराश या सदमापूर्ण हो जाते है और कई बार ऐसे कदम उठा बैठते है जो उन्हें नहीं करना चाहिए था।

                     मैं उन लोगों से इतना ही कहूँगा कि जीवन बहुत लंबा है। जीवन में उतार-चढ़ाव आते रहेंगे। फिर सिर्फ एक घटना से क्यों हारनाजो माँ-बाप अपना सुख-दुःख भुलाकरतुम्हारे ख़ुशी के लिए कार्यरत है। परमेश्वर से ज्यादा तुमको प्यार करते हैउनको तुम क्यों भूल जाते हो। क्या तुम्हारे प्यार के सामने उनका प्यार फीका पड़ जाता हैऔर जो पराया थाउसके लिए अपनी जान देने को तैयार हो गए या हो जाते हो।

                     एक बार सच्चे दिल से अपने माँ-बाप के प्यार को महसूस करो और उन्हें अपना कष्ट बताओउसका समाधान वे जरूर देंगे। व्यर्थ में इधर-उधर उपाय लेने से अच्छा है कि अपने माता-पिता को महत्व दो। फिर देखो तुम्हे स्वर्ग सा जीवन मिल जाता है की नहीं।

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