प्यार और जीवन
प्यार यह केवल ढाई अक्षर का शब्द ही नहीं है, बल्कि इन्ही ढाई अक्षरों में समस्त जगत समाया हुआ है। चाहे वह नियंता हो अथवा एक तुच्छ जीव।
जीव की उत्पति से ही प्यार की उत्पति हुई क्योकि यह किसी मूर्ति में विराजमान नहीं है और ना ही अचल वस्तुओं में। प्यार विराजमान है तो जीवो के ह्रदय में, जिसके कारण समस्त जगत गतिशील है। प्यार की परिभाषा नहीं दी जा सकती है, क्योकि समय के अनुसार या परिवर्तन के साथ इसकी परिभाषा बदल जाती है और नाम भी।
उदाहरण के लिए, माता-पिता का अपने बच्चे के प्रति प्यार, भाई-बहन का प्यार, मित्र के प्रति प्यार, भक्तो का परमेश्वर के प्रति, आलसी लोगो को निद्रा से, लैला-मजनू का प्यार, जानवरो के प्रति प्यार, देश के प्रति प्रेम, हरे-भरे वृक्षो से आच्छादित जगहों से लगाव या प्यार आदि ऐसे अनेक कारक है। जिससे किसी को ना, किसी को लगाव या प्यार जरूर है। शायद ही पृथ्वी पर कोई ऐसा जीव-जंतु हो, जो यह कह दे कि उसको किसी के प्रति प्रेम या स्नेह नहीं है। अगर ऐसा कोई कहता हैं, तो समझाना चाहिए कि वह मृत है और केवल उसका मुँह चल रहा है।
प्यार अगर नहीं होता तो, शायद आज जहाँ हम रह रहे है, वहा जीवन नहीं होता। अगर होता तो कल्पना कीजिये प्यार के बगैर वह जीवन कैसा होता? और वह जीव भी।
परिवर्तन के साथ-साथ प्यार की परिभाषा बदली और मतलब भी। मानव इसको हथियार के समान उपयोग करने लगा। वैसे भी कहा जाता है जो चीज अच्छी है, वह बुरी भी है। हम यह कतई नहीं कह सकते कि प्यार बुरा है क्योकि प्यार से ही दुनिया चल रही है। प्यार बुरा नहीं है, बल्कि प्यार को खंजर बनाकर उपयोग करने वाले वे लोग बुरे हैं। जो अपना उल्लू सीधा करने के लिए, किसी को प्यार में फाँसते है और मतलब पूरा हो जाने पर, दूध में मक्खी गिरी समझ निकाल फेकते है। और पुनः दूसरे लोगो को प्यार में फाँस कर, धोखा देने के लिए तैयार हो जाते है। कई लोगो को तो इसमें महारत हासिल है और हम धोखा खाने के बाद उन्हें समझ पाते है।
आज हमारी युवा पीढ़ी भी प्यार के ढ़ाई अक्षरो का गलत इस्तेमाल कर रही है। मेरा आशय केवल उन नवयुवको और नवयुवतीयो और उन लोगो के लिए है, जो प्यार को खेल समझते है। इसमें कई बार होता है क़ि वह एक दूसरे को सही से समझते नहीं है और वह सोच लेते है की उनका जीवन साथी मिल गया है। लेकिन जब प्यार में धोखा खा जाते है तो प्यार को खेल समझने वालो को तो कोई असर नहीं पड़ता है। परंतु जो यह मान बैठे रहते है की यह उनका सच्चा प्यार है, वे जीवन से निराश या सदमापूर्ण हो जाते है और कई बार ऐसे कदम उठा बैठते है जो उन्हें नहीं करना चाहिए था।
मैं उन लोगों से इतना ही कहूँगा कि जीवन बहुत लंबा है। जीवन में उतार-चढ़ाव आते रहेंगे। फिर सिर्फ एक घटना से क्यों हारना? जो माँ-बाप अपना सुख-दुःख भुलाकर, तुम्हारे ख़ुशी के लिए कार्यरत है। परमेश्वर से ज्यादा तुमको प्यार करते है, उनको तुम क्यों भूल जाते हो। क्या तुम्हारे प्यार के सामने उनका प्यार फीका पड़ जाता है? और जो पराया था, उसके लिए अपनी जान देने को तैयार हो गए या हो जाते हो।
एक बार सच्चे दिल से अपने माँ-बाप के प्यार को महसूस करो और उन्हें अपना कष्ट बताओ, उसका समाधान वे जरूर देंगे। व्यर्थ में इधर-उधर उपाय लेने से अच्छा है कि अपने माता-पिता को महत्व दो। फिर देखो तुम्हे स्वर्ग सा जीवन मिल जाता है की नहीं।
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