कर बुलंद, हार ना
तक़दीर को क्यों है कोसता,
दोष खुदा को क्यों है देता,
नहीं लिखा है तेरा भाग्य,
ऐसी कोई स्याही से,
कि ना मिटे अनवरत लड़ाई से।
दोष खुदा को क्यों है देता,
नहीं लिखा है तेरा भाग्य,
ऐसी कोई स्याही से,
कि ना मिटे अनवरत लड़ाई से।
मृग-मिरिचिका की तरह,
कब तक इधर-उधर भागेगा,
मुठियो को बंद कर,
कब तक कर्म तलाश करेगा।
कब तक इधर-उधर भागेगा,
मुठियो को बंद कर,
कब तक कर्म तलाश करेगा।
एक बार उन मुठियो को खोल तो ले,
फिर अपनी हथेली निहार,
ना देख उन रेखाओं को,
जो तेरे हाथ पर पहले से अंकित,
अपनी हथेली को कोर कागज़ जान,
परिश्रम दवारा कर्म का लेख लिख तो ले।
हार कर उससे कुछ सिख तो ले,
तक़दीर को क्यों है कोसता,
परिश्रम कर ख़ुद को बुलंद कर तो ले।
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