और एक आईना
माँ ने नौ महीने कष्ट उठाकर बच्चे को जन्माया,
स्वयं गीले में सो कर, उसे सूखे में सुलाया,
अपना पेट काटकर उसका पेट भरा,
सोचा बड़ा होकर एक दिन हमारा नाम करेगा,
हमारे बुढ़ापे में हमारा सहारा बनेगा|
माँ-बाप ने देखो देखा था एक सपना|
मेहनत कर उसे पढाया-लिखाया,
समाज में उसे बैठने-उठने लायक बनाया,
परंतु, बेटे पर हुई आधुनिकता कि जिंदगी सवार,
माँ-बाप के अमृत बोल,जैसे उसपर करते थे प्रहार,
माँ-बाप पर लगा हुकूमत चलाने,
उनके लाख समझाने पर भी वह न माना,
गलत संगत में पड़कर, नशा खोरी को अपना माना|
माँ-बाप ने देखो देखा था एक सपना|
एक दिन तो अजब हो गया,
एक पराई लडकी के लिए घर-बार छोड़ दिया,
अपने माँ-बाप को बेसहारा छोड़,
उनको ठोकर मारकर चल दिया,
कहता था, मैं इससे प्यार करता हूँ,
सातों जन्म इसके साथ जीने मरने कि कसम खाता हूँ|
माँ-बाप ने देखो देखा था एक सपना|
माँ-बाप उसके इस बर्ताव से बहुत दुखी हुए,
फिर भी कलेजे पर पत्थर रख,
खुदा से फरियाद कि, उसे खुश रखना|
माँ-बाप ने देखो देखा था एक सपना|
लेकिन माँ-बाप को दुख देने वाला कैसे बचता,
खुदा उपर से बैठ, हर क्षण सब कुछ देखता,
जिसके लिए उसने सब कुछ छोड़ा,
वह एक दिन कही चली गयी,
उसके खोज में लावारिशों कि तरह भटकता रह गया,
फिर उसे याद आई अपने माँ-बाप कि,
कलेजा फाड़कर वह रोने लगा|
माँ-बाप ने देखो देखा था एक सपना|
अब तो वह जीवन से हार चुका था,
मौत के सिवा उसके पास कोई रास्ता नहीं बचा था,
वह आगे भी जीवन जी सकता था,
लेकिन वह समाज में घुटन महसूस करता था,
जो हुआ सो अच्छा हुआ, उसे भूल जाओ,
तुम्हारे जीवन को माँ-बाप कि चरणों में बिताओ|
माँ-बाप ने देखो देखा था एक सपना|
No comments:
Post a Comment