Sunday, 19 January 2020

माटी का जीवन


माटी का जीवन

परमेश्वर ने मनुष्य को जन्म देते समय उसे एक माटी का गोला दिया और कहाँ, मैं तुम्हे एक कार्य सौप रहा हूँ| तुम इस माटी के गोले को जो भी आकार और स्वरूप दोगे, मैं उसे अंत: समय में देखूँगा|

                   जो मनुष्य अपने माटी के गोले को अपने परिश्रम, लगन और निष्ठां से उस माटी के गोले को वह आकार और स्वरूप देता हैं जो अपने आप में अनोखा और कल्पना से परिपूर्ण होता हैं, वही परमेश्वर द्वारा महामानव चुना जाता हैं| और उसके द्वारा बनाया गया वह माटी के गोले का विभिन्न आकार औत स्वरूप देख, अन्य मानव आश्चर्य चकित रह जाते हैं और उसके दवारा किये गए कार्य पर चलने की प्रेरणा लेते हैं|

                   जो मनुष्य अपने प्रेरणा को परिश्रम, लगन और निष्ठा से पूरा करता हैं, वह परमेश्वर द्वारा चुना जाता हैं और उसके कार्य को देख अन्य मानव आश्चर्य अनुभव करता हैं|

                   जो मनुष्य परमेश्वर द्वारा दिए गए माटी के गोले को गलत आकार और स्वरूप में ढालता हैं, वह परमेश्वर द्वारा दण्डित और समाज द्वारा उसका तिरस्कार किया जाता हैं|

                   उदाहरण के लिए, जिस प्रकार शिल्पकार अपनी मेहनत, लगन और निष्ठां द्वारा एक ऐसे भवन का निर्माण करता हैं जो अपने आप में अनोखा और अदभूत होता हैं| और इस संसार के लिए आश्चर्य का प्रतिक बनता हैं| अगर वही शिल्पकार आलसी, घमंडी और कामचोर स्वभाव के कारण, बिना मेहनत और लगन के बिना जो भवन का निर्माण करता है, अगर वह भद्दा और फूहड दिखाई देता है तो, उसे ढाह दिया जाता है और उसका कोई नामों निशान नहीं रहता हैं|

                   इसी प्रकार हमारा जीवन हैं| हम माटी के बने हैं और परमेश्वर द्वारा स्वयं निर्माण का कार्य हमें सौपा गया हैं| जो मनुष्य अपने जीवन को परिश्रम, लगन और निष्ठा द्वारा सफल बनाता है, वह परमेश्वर द्वारा महामानव चुना जाता हैं| वह संसार के लिए प्रेरणा का प्रतिक बनता हैं और उसके मृत्युकाल के पश्चात भी, वह अपने कर्मो द्वारा जिवंत रहता हैं| इसके विपरीत जो मानव अपने जीवन की सवारने की बजाए उसे बिगाडता है और सोचता हैं कि परमेश्वर ने उसके भाग्य में अच्चा मनुष्य बनाना नहीं लिखा हैं| तो यह उसका भ्रम हैं| अपने इन्ही दुत्कर्मो के कारण परमेश्वर द्वारा उसे दण्डित किया जायेगा और उसका इस संसार से नामो निशान मिटा दिया जायेगा

                    जिस प्रकार हम एक छोटे नन्हे बालक को जो शिक्षा देते हैं, वह उसी का अनुसरण कर आगे बदता हैं और अपने जीवन को जीता हैं| अगर हम उसे गलत शिक्षा, समाज में उसे ईर्ष्या से देखना,छोटा समझाना और दुत्कारना, अन्य बालको से उसकी घृणापद तुलना करना आदि ऐसे वाक्य बोलना जो उसके मन पर बुरा प्रभाव करे| जिससे वह अपने आप को समाज में छोटा समझेगा और अपने मार्ग से भटक जायेगा और गलत कार्य भी उसे सही लगेगा| इसके कुछ जिम्मेदार हम और समाज है|


                     हम उस शिल्पकार कि तरह है जो अपने भवन को अनोखा और सबसे फूहड बना सकता हैं| हम अपने जीवन के शिल्पकार हैं और हनारे द्वारा उत्पन्न उसे बालक के भी,जिसे इस संसार के बारे में कुछ नहीं मालूम| हम और अपने बच्चे को किस आकार और स्वरूप में ढालेंगे यह हम पर निर्भर करता हैं| जो इसमे सफल होगा वह महामानव कहलायेगा और आने वाली पीढियों के लिए प्रेरणा का प्रतिक बनेगा| असफल मनुष्यों को परमेश्वर द्वारा दण्डित और अपने दुत्कर्मो के कारण उनका नमो निशान संसार से मिट जायेगा|

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