कुछ बातें भगवद्गीता से
भक्त और भगवान के बीच पाँच प्रकार का संबंध हो सकता है|
१. कोई निष्क्रिय अवस्था में भक्त हो सकता हैं|
२. कोई सक्रिय अवस्था में भक्त हो सकता हैं|
३. कोई मित्र के रूप में भक्त हो सकता हैं|
४. कोई माता या पिता के रूप में भक्त हो सकता हैं|
५. कोई दम्पति-प्रेमी के रूप में भक्त हो सकता हैं|
प्रकृति तीन गुणों से निर्मित हैं|
१. सतोगुण
२. रजोगुण
३. तमोगुण
संसारिक पुरुषों के दोष|
१. वह त्रुटियाँ अवश्य करता हैं|
२. वह अनिवार्य रूप से मोहग्रस्त होता हैं|
३. उसमें अन्यों को धोखा देने की प्रवृति होती हैं|
४. वह अपूर्ण इंद्रियों के कारन सीमित होता हैं|
तीन प्रकार के कर्म
१. सात्विक कर्म
२. राजसिक कर्म
३. तामसिक कर्म
भगवद्गीता को गीतोपनिषद भी कहते हैं|
यह भगवद्गीता यथारूप इस शिष्य परम्परा द्वारा प्राप्त हूई हैं|
१. श्रीकृष्ण
२. ब्रहम
३. नारद
४. व्यास
५. मध्व
६. पद्धानाभ
७. नृहरि
८. माधव
९. अक्षोभ्य
१०. जयतीर्थ
११. ज्ञानसिंधु
१२. दयानिधि
१३. विद्यानिधि
१४. राजेन्द्र
१५. जयधर्म
१६. पुरुषोतम
१७. ब्रहाणय तीर्थ
१८. व्यासतीर्थ
१९. लक्षमीपति
२०. माधावेन्द्रपुरी
२१. ईश्वरपुरी (नित्यानंद, अदैत्त)
२२. श्रीचैतन्य महाप्रभु
२३. रूप (स्वरुप, सनातन)
२४. रघुनाथ जीव
२५. कृष्णदास
२६. नरोत्तम
२७. विश्वनाथ
२८. जगन्नाथ (बलदेव)
२९. भक्तिविनोद
३०. गौरिकिशोर
३१. भक्ति सिध्दांत सरस्वती
३२. ए. सी. भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद
कृष्ण भगवान के पिता – नन्द महाराज
वैदिक आदेशानुसार आततायी छ: प्रकार के होते हैं|
१. विष देनेवाला
२. घर में अग्नि लगानेवाला
३. घातक हथियार से हमला करनेवाला
४. धन लूटनेवाला
५. दूसरे की भूमि हडपनेवाला
६. पराई स्त्री का अपहरण करनेवाला
चाणक्य पंडित के अनुसार सामान्यतया स्त्रियाँ अधिक बुद्धिमान नहीं होती अत: वे विश्वसनीय नहीं हैं|
भौतिक पदार्थो के प्रति करुणा, शोक तथा अश्रु ये सब आत्मा के प्रति अज्ञानता के लक्षण हैं|
पृथा कृष्ण के पिता वसुदेव की बहन थी|
कृष्ण के पितामह नाना उग्रसेन
आचार्य – सान्दीपनि मुनि
शरीर में छ प्रकार के रूपांतर होते हैं|
१. यह माता के गर्भ से जन्म लेता हैं|
२. कुछ काल तक रहता हैं|
३. बढ़ता हैं|
४. कुछ प्रभाव दिखाता हैं|
५. धीरे धीरे क्षीण होता हैं|
६. अन्त: में लुप्त हो जाता हैं|
राजा अम्बरीष ने अपना मन भगवान कृष्ण के चरणार विन्दो पर स्थिर कर दिया|
१. अपनी वाणी भगवान के धाम की चर्चा करने में लगा दी|
२. अपने कानों को भगवान की लीलाओ के सुनने में|
३. अपने हाथों को भगवान का मंदिर साफ करने में|
४. अपनी आँखों को भगवान का स्वरुप देखने में|
५. अपने शरीर को भक्त के शरीर का स्पर्श करने में|
६. अपनी नाक को भगवान के चरणार विन्दोचरण पर भेंट किए गए फूलों की गंध सूंघने में|
७. अपनी जीभ को उन्हें अर्पित तुलसी दलों का आस्वाद करने में|
८. अपने पाँवो को जहाँ – जहाँ भगवान के मंदिर हैं उन स्थानों की यात्रा करने में|
९. अपने सिर को भगवान को नमस्कार करने में तथा अपनी इच्छाओ को भगवान की इच्छाओ को पूरा करने में लगा दिया|
चर वेद – ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, अर्थववेद
लिफ्ट – एलिवेटर
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