Wednesday, 13 May 2020

गरीबी एक अविशाप

यह मार्मिक कहानी दीनदयाल की है| जिसके पूर्वज पीढ़ी दर पीढ़ी खेती कर अपने परिवार का पालन-पोषण करते थे और कुछ बच जाता तो बुरे वक्त के लिए पूंजी जमा रखते थे| दीनदयाल भी अपने पूर्वजो के काम को आगे बढ़ा रहा है और अपने परिवार का पालन-पोषण कर रहा है| जिस गांव में वह रहता है, उसका नाम हसमुखपुर है और गांव के नाम की तरह, सब लोग हसमुख हैं| उन्हें किसी भी चीज की अति अविलाषा नहीं हैं और  शायद यही वजह है की वे सब खुश हैं| 

गांव ऐसा जैसे स्वर्गलोक है| चारो तरफ हरियाली ही हरियाली और नदी की धारा गावो के किनारे बहती हुई, धीमी सी आवाज में गीत गुनगुना रही हैं | पंछियों का चहचहाना, वातावरण में संगीत घोल रहा हैं| किसी को कोई तकलीफ हो, पूरा गांव एक साथ खड़ा हो जाता हैं| जैसे सब अपने हैं| कोई द्वेष-भेदभाव नहीं| 

रोज सूरज की पहली किरण से पहले, लोग अपने खेती के काम के लिए निकल जाते हैं और शाम होते-होते अपने घर लौट आते है| गांव के बिच चौपाल लगा अपने अनुभव और एक दूसरे का दर्द साँझा करते है| 

दीनदयाल को एक लड़का और एक लड़की है| लड़का ७ साल का है और लड़की ५ साल की है| उसकी पत्नी और वो, उनके भविष्य को लेकर चिंतित हैं| उनका एक ही सपना है की उनके बच्चे पढ़-लिख कर अपने पैरो पर खड़े हो जाये|   

गांव के विद्यालय में उसके बच्चे, और बच्चो के साथ पढ़ने जाते है| गांव में सब कुछ अच्छा चल रहा हैं| जैसे-जैसे समय बीतता जाता है| लोगो के जीवन में, आधुनिकता अपना  पैर पसारने लगता है और अब लोग ज्यादा से ज्यादा धन कमाने, आराम दायक जिंदगी, बच्चो का भविष्य बनाने आदि के लिए भाग-दौड़ करने लगते हैं और महत्वकांछी होते जाते है|    

दीनदयाल भी इससे अछूता नहीं रहता हैं|  

गांव के कुछ किलोमीटर दुरी पर, सरकार द्वारा भिन्न-भिन्न कल-कारखाने लगाए जाते है| गांव के युवा लोग, खेती की जगह, कल-कारखानों में काम करने को तबज्जो देते हैं| 

धीरे-धीरे कल-कारखानों के कारण, नदी का पानी दूषित हो जाता है और नदी का जलस्तर भी कम हो जाता है| खेती अब पूर्ण रूप से बारिश के पानी पर निर्भर हो जाती है| साल दर साल बारिश समय पर न होने से, खेतो में लगे बीज और फसल सुख जाते है|   

जो पूरी तरह खेती पर निर्भर है उनकी आर्थिक स्थिति दयनीय हो गई है| कोई कर्ज के बोझ के तले दबा हुआ है तो कोई परिवार का पालन-पोषण ना कर पाने के कारण छुब्ध है| पेट के कारण खेती-बाड़ी छोड़, घर के बड़े और कुछ अपने परिवार के साथ शहरो में काम करने के लिए निकल पड़ते हैं|  

दीनदयाल भी अपने परिवार के साथ औरो की तरह शहर आ जाता है| भाड़े पर एक कमरा ले, अपने परिवार के साथ दिन बिताने लगता है| ज्यादा पढ़ा-लिखा ना होने के कारण, नौकरी की तलाश में दर-दर भटकता है| कुछ दिनों बाद, उसे एक कपडे के कारखाने में नौकरी मिल जाती है| ख़ुशी-ख़ुशी अपने परिवार और बच्चों का भविष्य सवारने में लग जाता है| 

इसी तरह कई वर्ष बीत जाते है| उसका लड़का अब १५ साल और लड़की १३ साल की हो चुकी है| दोनों पढ़ने-लिखने में होशियार है और कई बार दोनों को  उनके विद्यालय से प्रोतसाहन मिल चुका है| जब भी दीनदयाल उनके विद्यालय में जाता, ख़ुशी से फुला ना समाता और मन ही मन अपने सपने को पूरा होते हुए देख, गदगद हो जाता|

दीनदयाल शहर में ख़ुशी-ख़ुशी अपना जीवन व्यापन कर रहा है| उसे जब भी अपने गाओं की याद आती, तो वह, यह सोच कर सब्र कर लेता की, अब यही रह कर अपने बच्चो का भविष्य बना लेगा और फिर बाकि का जीवन अपने गांव में बिताएगा| 

परन्तु ऊपर वाले को कुछ और ही मंजूर था| शहर में महामारी फैल गयी और सरकार ने पुरे शहर को बंद कर दिया| जिसके कारण, दीनदयाल के तरह ना  जाने कितने मजदूरो की रातो-रात नौकरी चली गई और उनके सपने बिखर गये| 

जब तक उनके पास जमा पूंजी थी उससे किसी तरह अपने जीवन की गाड़ी खींची| परन्तु यह ज्यादा दिन नहीं चला| जैसे-जैसे जमा पूंजी खत्म होने लगे, उनके सामने भुखमरी की नौबत आ गई| कई बार आधे पेट खा कर, तो कभी भूखे पेट सो जाते| 

महीनो बीत गये| सरकार राशन-पानी देने का वादा तो करती, लेकिन कभी उन तक नहीं पहुँचा| कभी-कभार किसी के हाथो कुछ खाने को मिल जाता तो, कुछ क्षण के लिए उनके पेट की आग शांत हो जाती|      

सरकार ने सब कुछ बंद कर रखा था| वे असहाय थे और किसी तरह अपने गांव जाना चाहते थे| क्योकि उन्हें पता था एक बार गांव पहुंच गये तो भूखो तो नहीं मरना पड़ेगा| यही सोच, वे पैदल ही निकल पड़े अपने मंजिल की ओर| अपने हालत को कोसते हुये| किसकी मंजिल कितनी दूर, इसका मलाल नहीं| बस चलना है और चलना है| कुछ लोग, किसी तरह अपनी मंजिल पर पहुंच गये, तो कई बीच रस्ते, अपनों को छोड़ इस दुनिया से चले गए| 

दीनदयाल भी किसी तरह अपने गांव पहुंच गया है| गांव पहुँचकर मानो, उसका दुःख-दर्द जैसे छू मंतर हो गया है| क्यों ना हो? कम से कम अब उसे और उसके परिवार को भूखे पेट तो नहीं सोना पड़ेगा| जो उसके सगे-संबंधी है, कुछ दिनों का उसके खाने-पीने का बंदोबस्त कर देते हैं| आज कई दिनों बाद, उसका परिवार पेटभर खाना खाता है| 

खाना खाते वक्त, उसके आँखों से अश्रु की धार फूटना चाहती है| लेकिन वो उसे रोककर अपने भाग्य को कोसता है| 

ये हमारे देश का दुर्भाग्य है की बड़े से बड़ा नेता, मतदान के कुछ समय से, मतदान के दिन तक इन गरीबो के बीच जा कर हाथ जोड़ते है| गरीबी दूर करने का वादा करते है और उसके बदले वोट माँगते है| और मतदान जैसे ही ख़त्म हो जाता है| इनके वादे भी पानी के बुलबुलो की तरह फुट जाते है| 

ये गरीबी, उनके लिए अविशाप नहीं है तो और क्या है? वे केवल वोट बैंक बनकर रह गए हैं |
  

No comments:

Post a Comment